किसी भी व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है।‘शिक्षा’ शब्द को लेकर आज भी एकमतता नहीं है, स्कूल में पठन-पाठन को शिक्षा का वास्तविक रूप माना जाता है, महात्मा गाँधी ने शिक्षा को सर्वांगीण विकास (शरीर, आत्मा तथा मस्तिष्क के विकास) की प्रक्रिया माना प्राचीन काल में भारतीय मनीषियों ने ‘सा विद्या या विमुक्तये’ कहकर शिक्षा का लक्ष्य निर्धारित किया था। इसका एक पक्ष तो व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करता है जिसमें बुद्धि, रूचि, आत्मविश्वास व प्रोत्साहित होना आते हैं। दूसरा पक्ष समाज के भावी विकास में योगदान देता है। शिक्षा के द्वारा ही विचार आध्यात्मिक मूल्य, महत्वाकांक्षाओ का विकास और संस्कृति के सरंक्षण का कार्य भी किया जाता है। व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता रहता है। वास्तव में यह माना जाता है कि उसका सम्पूर्ण जीवन शिक्षा काल है। मनुष्य को समाज में रहते हुए कई व्यक्तियों से अन्तक्रिया करनी पड़ती है। प्रत्येक समाज के कुछ नियम, परम्पराएँ, संस्कृति एवं मूल्य होते है। व्यक्ति को उस समाज में सामंजस्य स्थापित करने के योग्य बनाने के लिए उसका विकास उस समाज या समुदाय की संरचना के अनुसार किया जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप उसमें सामाजिक कौशलों का विकास हो सके। सामाजिक सामंजस्य स्थापित करने में व्यक्ति की समस्या समाधान की योग्यता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किसी न किसी प्रकार की समस्या का सामना अवश्य ही करना पड़ता है। इस हेतु शिक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य यह हो जाता है कि वह विद्यार्थियों में समस्या समाधान योग्यता को विकसित करे ताकि वे जीवन में आने वाली चुनौतियों व समस्याओं का साहस से सफलतापूर्वक सामना कर सके। इस शोध पत्र ...