भारत में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया गया है लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जनता की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में भागीदारी होती है। इस प्रणाली का केंद्र बिंदु है विकेंद्रित सत्ता, क्योंकि स्थानीय स्तर पर लोंगो को अपनी दैनिक समस्याओं को हल करने का अधिकार न दिया जाए तो लोकतंत्र व कल्याणकारी राज्य के कोई मायने नहीं रह जाते है। स्थानीय स्तर पर स्थानीय व्यवस्था में विकास एंव सुधार की समय-समय पर आवश्यकता महसूस की जाती रही है। 73वें संविधान संशोधन 1992 के सवैंधानिक दर्जे के पश्चात् पंचायती राज व्यवस्था में केंद्र सरकार द्वारा 2005 में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के गठन के रूप में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया, जिसने हर क्षेत्र में सुधार के लिए सिफारिशें की। प्रस्तुत पत्र द्वितीय स्त्रोत पर आधारित है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग, 2005 की छठी रिपोर्ट, स्थानीय अधिशासन का पार्ट-4 पंचायती राज के विकास की सिफरिशों का वर्णन करता है। पत्र में पंचायती राज की मुरव्य सिफारिशों का विश्लेषणात्मक वर्णन किया गया है। प्रस्तुत पत्र का मुरव्य उद्वेश्य पंचायती राज संस्थाओं के बारे में प्रस्तुत की गई आयोग की सिफारिशों से लोक प्रशासन व अन्य सम्बन्धित विषयों के शोधकर्ताओं व छात्रों को भविष्य में शोध के लिए प्रेरित करना है।