मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ ही धीरे-धीरे साहित्यकारों का यथार्थ के प्रति विश्वास बढ़ता ही चला गया। साहित्यकार यथार्थ की विभिन्न विधाओं कें द्वारा मानव जीवन को चित्रित करता है। यथार्थ का चित्रण करना एक बहुत ही मुश्किल एवं जटिल काम माना जाता है, परन्तु साहित्यकार अपनी लेखनी (कला) के माध्यम से यथार्थ को ज्यो का त्यों प्रस्तुत करने का प्रयास करता रहता है। यथार्थ का उद्देश्य (उद्देश्य) समाज में व्याप्त अच्छाईयों-बुराईयों की ओर ध्यान दिलाना ही नहीं रहा। अपितु पाठकों को सामजिक विकृतियों तथा कृप्रथाओं के प्रति जागरूक भी करता है। और साथ ही साथ जीवन के उदात पहलुओं, दशाओं की और अग्रसर होने के लिए पे्ररित भी करता है।