नारी प्रकृति रूपा है, प्रकृति परमपुरुष की इच्छा का प्रतिफलन है।प्रसिद्ध है कि जगन्नियता को जब एकाकी रमने में कुछ ऊब सी हुई तो वे स्वकीयइच्छा-शक्ति से एक से दो हो गए। उस तरह से प्रकृति की सुरुचिपूर्ण रमण सृष्टिहै। वह पुरुष की पूरक है। उसे आदिकाल से ही समस्त सृष्टि की संचालिकाशक्ति माना जाता है। नारी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। नारीके संयोग से ही संसार आगे बढ़ता है।