भक्ति काल में अनके संत हुए हैं जिन्होनें परमात्मा की भक्ति की दो काव्यधारा सगुण और निगुर्ण भक्ति की विचारधारा का प्रतिपादन किया। निर्गुण भक्ति का प्रतिपादन करने वाले महात्माओं ने परमात्मा के एकेश्वरवाद अर्थात परमात्मा जो सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक है। वो एक ही है। वह सारे संसार से अलग है तथा लोक और वेद दोनों से परे है। सब महात्माओं का यही अनुभव है कि जिस परमात्मा से हम मिलना चाहते हैं वह एक है। यह नहीं कि हिन्दुओ का कोई और या सिक्खों और ईसाईयों का कोई ओर।