हिन्दी साहित्य में ऐतिहासिक विवरणों का वर्णन मिलता है। इनमें अलग-अलग पुरुष एवं नारी पात्र मिलते हैं, जिनकी महिमा के बारे में बताया गया है। मनुष्य के भीतर जो मधुर मनोरम भावनाएँ अस्पष्ट रूप में बिखरी रहती है, उन्हीं का सुनियोजित सुस्पष्ट संगठन अथवा भावनाओं का दृश्यीकरण सौन्दर्य है। देश, काल और संस्कार के अनुरूप प्रत्यक्ष सौन्दर्य के प्रतिमान भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, पर उसके आनन्ददायक प्रभाव के विषय में दे मत नहीं हो सकते। यही कारण है कि कालिदास को शकुन्तला और शेक्सपीयर की मिरांडा नखशिख में भिन्न होते हुए भी प्रेम, पवित्रता और मंजुलता की मूर्तियाँ है। भारतीय संस्कृति में रूप को चेतना का उज्ज्वल वरदान मानकर उसके मंगल विधायक प्रभाव का अनिवार्यतः विधान कर दिया गया है। यहाँ शिव और सुन्दर में कोई अंतर नहीं किया गया। हिन्दी साहित्य में नारी को विभिन्न रूपों में वर्णित किया गया है। वृंदावनलाल जी ने अपने ऐतिहासिक उपन्यासों के लिए झांसी की रानी, मृगनयनी, महारानी दुर्गावती, अहिल्याबाई और रायगढ़ की रानी जैसे पात्रों का चुना है। इन्हीं का वर्णन प्रस्तुत शोध-पत्र में किया गया है।