काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि कबीर की अभिव्यक्ति अपने परिवेश में स्फूर्त एवं स्वंय अनुभव का परिणाम है। संतो का अनुभव उनके आँखों देखे समाज अथवा इतिहास में से गुजरते हुए संवेदनशील मनुष्य का अनुभव है। वे उपेक्षित, शोषित, बहिष्कृत, अशिक्षित शास्त्रज्ञान से रहित, किन्तु संस्कारवान रचनाकार थे, जो श्रमिक वर्ग से जुड़े हुए थे। कबीर इतिहास की विषम परिस्थितियों में जिए थे। इतिहास की उन विषम परिस्थितियों ने ही इनके व्यक्तित्व को विसंगतियों से लड़ने का साहस प्रदान किया था। चेतना और व्यवहार की निरूतर लड़ाई ने इनकी वाणी को जीवंतता एवं अर्जस्विता प्रदान की है।
आज जब आये दिन पुरातन कवियों की प्रासंगिकता का प्रश्न उठता है, तब कबीर की प्रासंगिकता का प्रश्न न उठे ऐसा कैसे हो सकता है। कबीर की प्रासंगिकता को जानने से पहले हमें प्रासंगिकता के अर्थ को जान लेना जरूरी है।