हिंदी साहित्य परंपरा में सिद्ध साहित्य का महत्वपूर्ण योगदना रहा है। सिद्ध साहित्य ने भक्तिकाल की सगुण और निर्गुण दोनों धाराओं को प्रभावित किया। सिद्धों का सम्बन्ध बौद्ध धर्म की बज्रयानी शाखा से है। ये भारत के पूर्वी भाग में सक्रिय थे। इनकी संख्या 84 मानी जाती है जिनमें सरहप्पा, शवरप्पा, लुइप्पा, डोम्भिप्पा, कुक्कुरिप्पा आदि मुख्य हैं। सरहप्पा प्रथम सिद्ध कवि थे। इन्होंने जातिवाद और बाह्याचारों पर प्रहार किया। देहवाद का महिमा मण्डन किया और सहज साधना पर बल दिया। ये महासुखवाद द्वारा ईश्वरत्व की प्राप्ति पर बल देते हैं।