प्रवासी हिंदी साहित्य के अंतर्गत कविताएं, उपन्यास, कहानियां नाटक, एंकाकी, महाकाव्य, खण्डकाव्य अनूदित साहित्य, यात्रा वर्णन, आत्महत्या आदि का सृजन हुआ है प्रवासी साहित्यकारों की संख्या भी श्लाघनीय है इन साहिंत्यकारों ने अपनी रचनाओ द्वारा नीति-मल्य, मिथक, इतिहास सभ्यता के माध्यम से भारतीयता को सुरक्षित रखा है। हिंदी को प्रवाहित रखा जिंदा रखा है। इन साहित्यकारों में प्रमुख नाम है- साहित्यकार हरिशंकर आदेश उनकी लगभग तीन सौ से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई है। वे 1966 से 1976ई. तक वेस्ट इंडिज में भारत के उच्चायुक्त के रूप में कार्यरत रहे थे। वेस्ट इंडिज के कार्यकाल के दरमियान उन्होने अवलोकन किया कि चर्च द्वारा वहां बसे हुए भारतीयों जिन्हें वर्षो पहले ब्रिटिश मजदूर बनाकर ले गए थे पर धर्मातंर के लिये दवाब डाला जा रहा है। महाकवि आदेश ने इस बात को गंभीरता से लिया। उन्होने इसे रोकने के लिये नामकरण से लेकर मृत्यु संस्कारादि धार्मिक कार्य के लिये वहां के निवासियो को प्रशिक्षित किया। आदेश जी के कारण वहां के लोगो को राहत मिली। सुरक्षा महसूस हुई इसलिये उन्हें उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद भी किसी ने भारत लौटने नही दिया। लगभग 50 वर्ष हो गए। वे वहीं के होकर रहे हैं। उन्होने वेस्ट इंडिज में भारतीय विद्या संस्थान की स्थापना की हैं। इस संस्था द्वारा उन्होंने बी.ए. स्तर के हिंदी पाठयक्रम सीखने का प्रावधान किया हैं। इतना ही नही भारतीय आभिजात्य संगीत का पाठयक्रम भी शुरू कर रखा हैं। उन्होने भारत और हिंदी संबंधी गीत लिखे है। उन गीतों तथा रागों का अध्यापन वे स्वयं करते रहें है उनकी हिंदी की तीन सौ से अधिक रचनाएं प्रकाशिक हुई है। उनमें महाकाव्य, खंडकाव्य, भगवतगीता का हिन्दी और अंग्रेजी पद्यानुवाद तीस नाटक, ...