भारतीय राजनीतिक मंच पर 1919 से 1948 तक महात्मा गांधी जी इस प्रकार छाए रहे कि इस युग को भारतीय इतिहास का गांधी युग कहा जाता है। 1914 में गांधी जी भारत लौट आए और अपनी सेवाओं की मान्यता के फलस्वरूप अब महात्मा कहलाने लगे। आने वाले कुछ समय तक भारतीय स्थिति का अध्ययन करते रहे । 1917 में उन्होंने बिहार के चंपारण जिले में नील के बगीचों के यूरोपीय मालिकों के विरुद्ध भारतीय मजदूरों को एकत्रित किया। 1919 की जलियांवाला बाग में हुई दुर्घटना और रोलट ऐक्ट के पारित होने पर गांधी जी बहुत खिन्न हुए और उन्होंने भारतीय राजनीति में सक्रिय भाग लेना आरंभ कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों को 'शैतानी लोग 'कहा और अपनी असहयोग की नीति अपनाई।
खिलाफत और असहयोग आंदोलन (1919-22) - लखनऊ समझौते के परिणाम स्वरुप हिंदू- मुस्लिम एकता को बल मिला। तुर्की साम्राज्य के प्रति ब्रिटेन के व्यवहार के कारण अली बंधुओं, मौलाना आजाद ,हकीम अजमल खां और हसरत मोहानी के नेतृत्व में खिलाफत कमेटी बनी और देशव्यापी आंदोलन शुरू किया गया।
महात्मा गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन को हिंदू- मुस्लिम एकता का अवसर समझा और इसका समर्थन किया रोल्ट ऐक्ट, जलियांवाला बाग के भीषण गोलीकांड और खिलाफत के कारण गांधी जी ने 1920 के कोलकाता अधिवेशन में सरकार से असहयोग का प्रस्ताव पारित करवाया। इसमें निर्णय लिया कि सभी सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार किया जाएगा। 1921 और 1922 में भारतीय जनता ने एक अभूतपूर्व आंदोलन किया। विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई, छात्रों ने कॉलेजों को छोड़ कर विरोध प्रदर्शन किया परंतु 5 फरवरी 1922 को यूपी के चोरी चोरा नामक स्थान पर क्रुद्ध भीड़ हिंसक हो गई और 22 पुलिसकर्मी मार दिए गए ।इस घटना की खबर मिलते ही गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया।
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