मानव सभ्यता की कहानी के अध्ययन के विभिन्न पहलुओं में अधिवास प्रक्रिया का नाम प्रमुखता से लिया गया है। अधिवास प्रक्रिया का सम्बन्ध पूर्वी हरियाणा के क्षेत्र का स्थान विशेष रूप से माना जाता है क्योंकि क्षेत्र विशेष में प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता मानव की अधिवास प्रक्रिया को प्रभावित करती है। अधिवास शब्द से अलग के व्यवस्थित या समुचित चयन एवं रहने का बोध होता है लेकिन इसे परिभाषित स्वरूप प्रदान करें तो ‘‘मानव के द्वारा अपने आवास के लिए समुचित आवास का चुनाव एवं उसके मूल में तत्सम्बन्धी समस्त अनुकूलताएं साथ ही संचरणगत व्यवस्थाओं को हम अधिवास प्रक्रिया के अन्तर्गत रखते हैं।’’ यह आवश्यक नहीं है कि उसके लिए किसी एक टाइप्ड मॉडल को स्वीकार कर लिया जाय अपितु समय एवं विशेषतः स्थान विशेष के सन्दर्भ में उपरोक्त बिन्दुगत तथ्यों में परिवर्तन अपेक्षित है। पाश्चात्य पुरातत्वविदों एवं नेतृत्व शास्त्रियों ने अधिवास पुरातत्व के क्षेत्र में अग्रणी कार्य किया है। यहाँ तक कि अब तो सामान्य रूप से पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन में अधिवासगत प्रक्रिया के अध्ययन को दृष्टिगत रखते हुए उत्खनन कार्य किया जा रहा है। इसमें क्रमशः अधिवास के सन्दर्भ में विकसित होती अवधारणाओं का समुचित अध्ययन सहजमेव सम्भव है। इस दिशा में परसन, मारगन, विली, ट्रिगर, बी.जी. चाइल्ड, बिनफोर्ड का नाम लिया जा सकता है।