माज में कुछ मानक निर्धारित होते हैं। व्यक्ति को उन्हीं के अनुरूप अपना व्यवहार निर्धारित करना पड़ता है। परन्तु उसका व्यवहार सदैव उन निर्धारित मानकों के अनुरूप ही हो, यह आवश्यक नहीं। सामाजिक संरचना के स्वरूप एवं प्रकृति का प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व और कार्यों पर पड़ता ही है। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है। क्योंकि व्यक्ति इस सामाजिक संरचना का अंग होता है। यह प्रभाव दोनों प्रकार का हो सकता है- अच्छा भी और बुरा भी। इसी कारण व्यक्ति का व्यक्तित्व एवं व्यवहार समाज के अनुकूल भी हो सकता है और प्रतिकूल भी। इसी प्रतिकूल या अस्वाभाविक अवस्था को समाज में ‘विसंगति’ कहा जाता है।