काव्य एवं सौन्दर्य का चोली दामन का अन्योन्याश्रम संबंध है। रमणीयार्थ प्रतिपादन शब्द काव्यम अर्थात रमणीय या सुंदर अर्थों का प्रतिपदन करने वाला शब्द ही काव्य है। सौन्दर्य विहीन काव्य काव्य नहीं है। विश्व का सौन्दर्य, बाल्मीकि, कालिदास, कबीरदास, तुलसीदास एवं जय शंकर प्रसाद के काव्यों में दृष्टिगोचर होता है। प्रकृति सौन्दर्य मानव सौन्दर्य, दिव्य सौन्दर्य एवं भाषा सौन्दर्य आदि काव्य में ही विद्यमान होता है।