संस्कृत भाषा के क्रियापदों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है तिङन्त क्रियापद एवं कृदन्त क्रियापद। ये दोनों प्रकार के क्रियापद दो सार्थक इकाईयों से बनते हैं। संज्ञावादी या विशेषण आदि बनाने के लिए धातु से जो प्रत्यय किए जाते हैं उन्हें कृत् कहते हैं। आचार्य पणिनि ने धातुओं से होने वाले ‘तिप तस झि’ आदि ‘तिङ्’ भिन्न प्रत्ययों को कृत् संज्ञा दी है- ‘कृदतिङ्’। इस प्रकार कृदन्त वे शब्द हैं जो ‘तिङ्’ भिन्न प्रत्ययों को धातुओं से जोड़कर बनाए जाते हैं।