खेल मानव जीवन के विकास का आधार एवं बाल जीवन का प्राण तत्व और मूल अधिकार है। खेल के माध्यम से बालक-बालिकाएँ अपनी नैसर्गिक प्रवत्तियों एवं अपने संवेगों के प्रबन्धन को उत्तम दिशा देते हैं। सर्वसिद्ध तथ्य है कि खेलों का महत्व मानव जीवन में अनेक दृष्टिकोणों से शिक्षात्मक उपागम के रूप में है। मानवीय मूल्य, भावनात्मक विकास, धैर्य, अनुशासन, मित्रता, सहयोग, ईमानदारी, प्रतिस्पर्धा एवं नेतृत्व व्यवहार जैसे गुण, उपदेशों से अधिक बालक-बालिकाएँ खेलों के माध्यम से सहज रूप से सीख लेते हैं। इसीलिए मारिया मोंटेश्नरी, गिजू भाई जैसे शिक्षाविद् बालक-बालिकाओं को खेलों के माध्यम से शिक्षा देने के प्रबल हिमायती रहे हैं, हो भी क्यों नही क्योंकि खेल सीखने-सिखाने के वातावरण निर्माण को दिशा देने के साथ-साथ अन्य जीवन कौशलों को स्वभाव में बालक-बालिकाओं में प्रतिस्थापित कर देते हैं। अतः खेल विद्या अर्जन की दृष्टि से, स्वविकास की दृष्टि से दोहरे लाभ रूपी उपागम हैं। इसी विचारधारा निमित्त मैक्डूगल, रॉस एवं टी.पीनन जैसे विचारकों का प्रबल मत रहा है कि खेल बाल जीवन में संरक्षा, अभिवृद्धि और विकास, आनन्द, स्फूर्ति, सृजनात्मकता एवं जीवन मूल्यों के स्वाभाविक विकास के आधार हैं।