प्रकृति और पुरूष का अन्योनाश्रित संबंध है। वस्तुतः सम्पूर्ण सृष्टि की रचना में इनकी एक दूसरे के पूरक की भूमिका रही है। प्रकृति के अभाव में पुरूष की कल्पना ही दुष्कर है। सत्य तो यह है कि मानव अपनी पर्यावरण की उपज है। पर्यावरण वह परिस्थिति है जो मनुष्य को चारों ओर से घेरे रहती है। इसका मनुष्य के जीवन और क्रियाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। इसके अन्तर्गत वे सभी परिस्थितियां, दशाएं और प्रभाव सम्मिलित हैं जो जैव अथवा जैवकीय समह पर प्रभाव डाल रही है। मनुष्य की कुल पर्यावरण संबंधी प्रणाली में न केवल जीवन मण्डल सम्मिलित है, अपितु इसके प्राकृतिक तथा मानव निर्मित प्रवेश के साथ-साथ उसकी अन्तः क्रियायें भी सम्मिलित हैं। पर्यावरण की विधि सम्मत परिभाषा में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (क) में कहा गया है “पर्यावरण में जल, वायु, भूमि के अन्तर संबंध सम्मिलित हैं जो जल, वायु, भूमि और मानव जीव अन्य प्राणियों पौधों सूक्ष्म जीवों और सम्पत्ति के मध्य विद्यमान है” इस विधि सम्मत परिभाषा को समाज शास्त्रीय मैकाइवर के शब्दों में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है “पृथ्वी का धरातल और उसकी सारी प्राकृतिक दशाएं, प्राकृतिक शक्तियां जो पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती है पर्यावरण के अन्तर्गत आती है” वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार पर्यावरण से आशय उन घेरे में रहने वाली परिस्थितियों, प्रभावों और शक्तियों से है जो सामाजिक और सांस्कृतिक दशाओं के समूह द्वारा व्यक्ति और समदाय के जीवन को प्रभावित करता है” पर्यावरणविद फिटिंग का मानना है कि “प्राणियों का पारिस्थिकीय मांग ही पर्यावरण है” युनिवर्सल विश्वकोष के अनुसार “पर्यावरण उन समस्त दशाओं अभिकरणों तथा प्रभावों का योग है जो किसी जीव, जाति या प्रज ...