प्राचीन काल से समाज का उत्कर्ष मनुष्य के आर्थिक जीवन की सम्पन्नता, समान्नति और सुख-सुविधा पर निर्भर करता रहा है। व्यक्ति का भौतिक और लौकिक सुख उसके जीवन के आर्थिक विकास से प्रभावित होता है। यह सही है कि समय-समय पर मनुष्य के आर्थिक कार्यक्रम उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप घटते-बढ़ते और परिवर्तित भी होते रहे हैं। किन्तु आर्थिक जीवन का मूल आधार कृषि और व्यापार रहा है। इसमें कोई अन्तर नहीं आ पाया है। आज भी विश्व का समाज इन्हीं दो आधारों पर टिका है। अतः आर्थिक जीवन को उत्प्रेरित करने वाली ये प्रवृत्तियाँ प्रत्येक युग में सहज रूप से स्वभावतः उद्भूत होती रही हैं। ये समाज को पुष्ट और स्वस्थ बनाने में सक्रिय सहयोग प्रदान करती हैं तथा इससे व्यक्ति और समाज का विकास स्वाभाविक गति से होता रहा है। कृषि और व्यापार आर्थिक जीवन के प्रमुख अंग हैं।