भारत-पाक संघर्ष एक प्रकृति को सही रूप से समझने के लिये भारत विभाजन में निहित तथ्यों का वस्तु निष्ठ अध्ययन अपरिहार्य है। विभाजन की घटना ने दो समुदायों के बीच घृणा, अविश्वास और वैमनस्य को क्रूरतम ढ़ंग से उजागर किया है। विभाजन के बाद सभी समस्याओं के स्वतः ही सुलझ जाने का सपना देखने वालों ने जब वास्तविकता पर नजर दौड़ाई तो उन्हें घोर निराशा हुई। पाकिस्तान के जन्म से समस्याएँ सुलझाने की अपेक्षा उलझ गयी और इस महाद्वीप में नये संघर्ष का सूत्रपात हुआ जो अपनी प्रकृति से कहीं अधिक गहरा और पेचीदा था। कुलदीप नैयर के शब्दों में “विभाजन के लिये आप किसी को भी दोषी ठहरायें। वास्तविकता यह है कि इस पागलपन ने दो समुदायों और दो देशों के बीच दो पीढ़ीयों से भी अधिक समय तक के लिए संबंधों में कड़वाहट उत्पन्न कर दी। दोनों देशों में हर विषय और हर कदम पर मतभेद बढ़ता गया और छोटी-छोटी बात ने बड़े विवाद का रूप धारण कर लिया।” माईकल ब्रेशर ने ठीक ही लिखा है” भरत और पाकिस्तान हमेशा अघोषित युद्ध की स्थिति में रहे हैं। “भारत पाक संबंधों की चर्चा करते हुये पं0 नेहरू ने भारतीय संसद में स्पष्ट कहा कि” लोगों में यह भ्रान्तिपूर्ण धारणा है कि कश्मीर विवाद ही दोनों देशों के संघर्ष का कारण है।