पाश्चात्य काव्यशास्त्र से तात्पर्य है- यूरोपीय देश का काव्यशास्त्र। यूरोपीय देश के साथ-साथ अमेरिका और आस्ट्रेलिया का भी गणना पाश्चात्य देशों में की जाती है। शिवदान सिंह चैहान ने पाश्चात्य काव्यशास्त्र को सन् 2001 ई. से लगभग ढाई हजार पुरानी मानते हैं। उन्होंने स्पष्ट लिखा है- ‘‘पाश्चात्य काव्यशास्त्र की परंपरा भी लगभग ढाई हजार पुरानी है। आरंभ में उसका विकास यूनान में हुआ, फिर रोम में। प्लेटो, अरस्तु, लौंजाइनस, होरेस, क्विंटीलियन इस प्राचीन परम्परा के निर्माता हैं।