भारतीय दर्शन की अक्षुण्ण धारा अनादि काल से प्रवाहित है। दर्शन में मुख्यतः प्रमाणमीमांसा विज्ञान और आचार शास्त्र माने जाते रहे हैं। कालान्तर में दर्शन के विविध रूप विकसित हुए। इनमें धर्म-दर्शन, समाज-दर्शन, राजनीति-दर्शन, विज्ञान दर्शन, शिक्षा-दर्शन, राजनीति-दर्शन, विज्ञान-दर्शन, शिक्षा-दर्शन माने जा सकते हैं। दर्शन शास्त्र में शिक्षा के विषय में विस्तारपूर्वक विचार प्रस्तुत किया गया है। शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत वैदिक साहित्य में उल्लिखित शिक्षा-पद्धति, शिक्षा का स्वरूप एवं उद्देश्य एवं शिक्षा का महत्व वर्णित किया गया है। वैदिक कालीन शिक्षा पद्धति को वैज्ञानिक प्रणाली बताते हुए शिक्षा के विविध आयामों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
यह निर्विवाद माना जाता है कि भारत में आदि साहित्य वैदिक साहित्य है। वैदिक साहित्य को आदि साहित्य माना जाता है किन्तु उसका यह अभिप्राय नहीं है कि इस साहित्य में जो वर्णित है वह अविकसित हैं शिक्षा के संबंध में जितना सुव्यवस्थित वर्णन वेदों में मिलता है उतना संभवतः किसी अन्य साहित्य में नहीं मिलता है। हमारे दर्शन शास्त्र में शिक्षा पद्धति का विस्तृत विवेचन प्राप्त होता है।