महर्षि के अनुयायीयों ने महर्षि दयानन्द के विचारों से उर्जा प्राप्त कर थोड़े ही समय में हिन्दी भाषा के साहित्य और पत्रकरिता के कोष को अक्षत रूप से भर दिया। पत्रकारिता के विकास के साथ-साथ पत्रकारिता के नये सिद्धांतों का भी उद्भि हुआ। महर्षि दयानन्द की परम्परा में पोषित पत्रकारिता के सार्वभौमिक और नीतिगत सिद्धान्त थे- पत्रकारिता में सत्यता, निभीकता और प्रमाणिकता। महर्षि दयानन्द के सतचन में ये तीनों ही सिद्धान्त मौलिक रूप में विद्ममान थे जो अनुवांशिकता के सिद्धांतानुसार उनके अनुयायिओं में भी पहुँचे।