संस्कृत भारतीय भाषाओं का जीवन शक्ति स्त्रोत है। प्राचीन काल में भारत ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विश्व गुरू था। यवनों तथा अंग्रेजों ने भारतीयों की शान्तिप्रियता के कारण भारत को गुलाम बनाकर इसका सर्वस्व नष्ट करने का यत्न किया। उन्होंने स्वार्थ सिद्धि के लिए संस्कृत के स्थान पर उर्दू और अंग्रेजी को बढ़ावा दिया और इससे भारत का पतन हो गया। एक समय ऐसा रहा कि भारत गुलाम हो गया। लेकिन भारत की संस्कृति ऐसी थी कि न जाने अनेकों शहीदों, समाज सुधारकों ने भारत में जागृति पैदा की और भारत माँ को गुलामी की जंजीरों से आजाद करवाया। आज उसी का दुष्परिणाम है कि महिला अपराध, भ्रष्टाचार और आतंकवाद बेरोजगारी ये समस्याएँ प्रमुख रूप से समाज को व्यथित कर रही हैं आज नैतिक शिक्षा संस्कृत शिक्षा के अभाव में ही हमारा भारतीय समाज अपनी आध्यात्मिक अवधारणा को धीरे-धीरे त्यागता जा रहा है और भौतिकवाद की ओर तेजी से अग्रसर हो रहा है।