आदिमानव ने जब सूर्य की ऊषा काल की स्वर्णिम रश्मियो राशि चन्द्रमा की रजत किरण, वनस्पतियों का हास पशु पक्षी का विलास मेधान आकाशसिंग झिग बरसात, बादलो का गरमौर घोष वाघु जल-अग्नि का प्रकोप आदिप्राकृतिक उपादनों के सैदयों को देखा होगा तो उसका अकारण पुष दुख से भर गया होगा तथा उसकी भावाभिव्यक्षिा वह अपने अन्तःकरण पर पड़ने वाले प्रभावों के अनुरूप गुनगुनाया अथवा रोना-चिल्लाना मजाया होगा और इसी भावोच्छवासने विकृत यो गीत को जन्म दिया होगा तथा इसी के साथ भाषा भी अस्तित्व में आई होगी। इस प्रकार आदिमानव के जन्म के साथ ही गीत का जन्म भी माना जाना चाहिए।