भारत में प्राचीन काल से ही गृह प्रबंध में कुशल गृहिणियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गृह प्रबंध एक सहज कार्य नहीं है। इसके लिए यह आवश्यक है कि कार्यों को सुव्यवस्थित ढ़ंग से किया जाय और विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक सावधानी बरती जाय। गृह प्रबंध एक मानसिक प्रक्रिया भी है। इसका अर्थ किसी कार्य को निष्पादित करना या पूरा करना मात्र नहीं होता है अपितु यह अत्यंत सूक्ष्म और कुशलतापूर्वक बनायी जाने वाली योजना है जिसमें परिवार के सभी साधनों का उपयोग परिवार के सदस्यों की संतुष्टि और अधिकतम लाभ के लिये किया जाता है। गृह प्रबंध अपने लक्ष्यों को तभी प्राप्त करता है जब पारिवारिक साधनों के आधार पर गृह कार्यों का आयोजन, संगठन, कार्यान्वयन, नियंत्रण एवं मूल्यांकन हो। घर और पारिवारिक जीवन को सुदृढ़ बनाने में गृहिणी की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। गृह प्रबंध एक कला है और इसमें कुशलता व्यक्ति के बौद्धिक स्तर पर निर्भर करता है। यह एक मानसिक प्रक्रिया है जो घर के अंदर निरंतर चलती रहती है। एक कला के रूप में गृह प्रबंध घर से ही आरंभ होता है। समकालीन परिवेश में भी घर प्रबंध का संपूर्ण दायित्व गृहिणी पर निर्भर है। यह किसी पारिवारिक व्यस्था के सुनियोजित और क्रमबद्ध विकास में सहायक होता है। गृहिणी की कार्यकुशलता और निपुणता गृह प्रबंध की प्रमुख कसौटी है। प्रस्तुत आलेख में गृह प्रबंध में गृहिणी की भूमिका का अध्ययन प्रस्तावित है।