साहित्यशास्त्र में उपन्यास और कहानी के छः तत्व माने गये हैं। किसी उपन्यास की समीक्षा करते समय या उसके विषय में बातें करते समय इनका विवेचन काम में आता है, ये तत्व - कथानक, पात्र, संवाद, देशकाल, भाषा और शैली तथा उद्देश्य हैं। कथानक उस सामग्री का नाम है जिसे लेखक जीवन से चुनता है, जिसे पात्र, क्रिया व्यापार और घटनाओं के संबंध में निरूपित किया जाता है। पात्र या चरित्र वे व्यक्ति हैं, जिनके द्वारा घटनाएँ घटती हैं। उपन्यास जगत में पात्रों के मध्य बातचीत को कथोपकथन या संवाद कहते हैं। देशकाल से अभिप्राय उस काल और स्थान विशेष से रहता है, जिसका आधार उपन्यास का कथानक अथवा वस्तु-विन्यास ग्रहण करता है। भाषा और शैली उपन्यासकार की अभिव्यंजना पद्धति होते हैं तथा रचनाएँ किसी-न-किसी उद्देश्य की पूर्ति अवश्य करती हैं। “उपन्यास के विवेचन में उपन्यास की प्रविधि या शिल्प (टेकनीक), कथावस्तु (प्लाट), चरित्र-चित्रण, संवाद, शैली, देशकाल वातावरण, उद्देश्य आदि शब्द औपन्यासिक अवधारणाएँ हैं, जिनके निश्चित अर्थों के अभाव में उपन्यास का व्यवस्थित संतुलित और स्पष्ट विवेचन संभव नहीं है। नरेश मेहता उपन्यासकारों के रूप में पर्याप्त चर्चित एवं ख्यातिलब्ध रहें हैं। नरेश मेहता आधुनिक उपन्यासकारों में विशेष महत्व रखते हैं, वे व्यक्तिवादी उपन्यासकार हैं। अपनी कई विशेषताओं के कारण श्री नरेश मेहता ने नई पीढ़ी के उपन्यासकारों में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सन् 1950-60 तक का हिन्दी गद्य रूमानी मानसिकता से मुक्ति और आधुनिकता के स्वीकार की संक्रमण कालीन चेतना का गद्य है तथा नरेश मेहता में इसी काल की चेतना परिलक्षित होती है।