आज पर्यावरण संरक्षण की चर्चा होती है। पर्यावरण को बचाने का प्रयास चल रहा है, इसके पीछे मुख्य कारण हैं मानव को स्वस्थ रखना। पर्यावरण स्वच्छ एव् प्रदूषण रहित रहेगा तो हम स्वस्थ रहेंगे। इसमें कोई शक नहीं है कि पर्यावरण की सुरक्षा से हमारा शरीर का अन्नमय कोश स्वस्थ हो सकता है लेकिन क्या हमारे मन में भरे हुए मानसिक प्रदूषक, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईष्या, द्वेष, दम्भ पाखण्ड आदि विकार इस भौतिक पर्यावरण का संरक्षण करने से दूर हो सकते हैं? भौतिक पर्यावरण को स्वच्छ एव् प्रदूषण रहित रखने के साथ-साथ हमें अपने मानसिक (मनोमय कोष) को भी विकारों से रहित करना होगा। मुख्यरूप से हमारे नकारात्मक विचार ही अनेक रोगों का कारण बनते हैं।
प्रज्ञाअपरोधौहि सर्वरोगाणाम् मूल कारणम्
महर्षि चरक
मानसिक विकारों एव् सांसारिक दुःखों के निवारण हेतु मानव कल्याण के लिए भगवद्गीता का त्रियोग सिद्धान्त महत्वपूर्ण है।
योगास्त्रयो मयाप्रोक्ता नृणां श्रेयो विधित्सया।
ज्ञानं कर्म च भक्तिश्च नोपायोअन्योअस्ति कुत्रचित।।
श्रीमदभागवत
मानव कल्याण के लिए तीन योग बताये गये हैं - ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग इन तीनों के शिवाय मानसिक प्रदूषण के निवारण का कोई दूसरा कल्याण का मार्ग नहीं है। मानव समुदाय भोग और संग्रह में लगा हुआ है।