शिक्षा का अस्तित्व अति प्राचीन काल से चला आ रहा है, परंतु समय के साथ साथ शिक्षा के स्वरुप और ढांचे में भी परिवर्तन हुआ है। शिक्षा एक गतिशील सामाजिक प्रकिया है। समाज के परिवर्तन के अनुरुप ही शिक्षा के उददेश्यों की प्राप्ति की जा सकती है। पहले शिक्षा प्रकिया के सर्वोच्च शिखर पर शिक्षक हुआ करता था। बालक की रुचि, अभिवृति, अभिव्यक्ति, क्षमता, आवश्यकता पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था, परंतु शिक्षा का स्वरुप अब बदल चुका है शिक्षा अब बालकेंद्रित हो गई है। एवं शिक्षक का स्थान द्वितीय होने पर भी उसकी जिम्मेदारियां और बढ़ गई हैं। हम जानते है कि शिक्षा का अस्तित्व अति प्राचीन काल से चला आ रहा है और जैसे-जैसे शिक्षा का विकास होता गया इसके विकास में एक महत्वपूर्ण तत्व संस्कृति का भी प्रभाव हमेशा से रहा है। संस्कृतियों के अनुसार ही शिक्षा का निर्धारण एवं निमार्ण भी हुआ है। अतः शिक्षा में संस्कृति तत्व का विशेष महत्व रहता है। आज निरंतर प्रगति के फलस्वरुप देखते हैं, कि शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक रुप से कई बाते सामने उजागर हुई हैं।