मनुष्यो की मूलभूत आवश्यक आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान है। जिसके बिना मनुष्य का जीवन अधूरा एवं असंभव सा है। मनुष्य की इस सभी मूलभूत आवश्यक आवश्यकता की पूर्ति केवल कृषि (Agriculture) के द्वारा ही संभव है। अतः कृषि ही मनुष्य को खाने के लिए रोटी, शरीर को ढकने के लिए कपड़ा व रहने के लिए मकान आदि का व्यवस्था करती है। कृषि के अंतर्गत पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों का पालन-पोषण होता है। इसके माध्यम से प्राकृतिक में जैविक संतुलन बनाए रखने में सहायता मिलती है। कृषि से मानव संस्कृत हेतु कपड़ा, मकान, औषधि तथा मनोरंजन के साधन भी विकसित होते हैं इस प्रकार कृषि मानव जीवन का मुख्य आधार है। पहले कृषि का अर्थ सिर्फ फसल उत्पादन से ही लगाया जाता था। लेकिन बदलते दौर ने कृषि को भी बदल लिया है तथा समय-समय पर इसमे बहुत से व्यवसाय जुड़ते चले गए तथा इसके भाग बनते चले गए। जलवायु परिवर्तन के कारण वातावरण में कई तरह के बदलाव जैसे तापमान में वृद्धि, कम या ज्यादा बारिश, हवा की दिशा में बदलाव आदि हो रहे हैं, जिससे कृषि पर बुरा असर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन कृषि को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष माध्यमों से प्रभावित करता है जैसे फसलों, मिट्टी, मवेशियों, कीट-पतंगों आदि पर प्रभाव। मानसून के दौरान वर्षा की अवधि में कमी से वर्षा वाले क्षेत्रों की उत्पादकता में गिरावट आती है। ठंड और ठंढ तिलहन और सब्जियों के उत्पादन को कम करता है। वर्ष 2012 के जनवरी महीने में शीत लहर के परिणामस्वरूप आम, पपीता, केला, बैगन, टमाटर, आलू, मक्का, चावल आदि विभिन्न खाद्य पदार्थों की पैदावार अत्यधिक प्रभावित हुई थी। इस शोध पत्र में कृषि पर जलवायु परिवर्तन की भूमिका का भौगोलिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।