संचार मानव के स्वभाव का अभिन्न अंग है। संचार किसी भी समाज की आधारभूत आवश्यकता और जीवन की धुरी है। पारम्परिेक लोक माध्यमों का उद्भव आदिकाल में ही हुआ है।संचार का यह सर्वाधिक प्रभावी माध्यम है। इन माध्यमों के द्वारा साक्षर तथा निरक्षर दोनों ही समूहों सार्थक एवं प्रभावी ढंग से सन्देश प्रसारित किए जा सकते है। इन माध्यमों के अन्तर्गत धार्मिक प्रवचन कथा, वार्ता, गीत, संगीत, लोकसंगीत, लोककलाएं, लोकनाट्य आदि आते है। भाषायी आधार पर बुन्देलखण्ड के निवासियों की बोली बुन्देली है, बुन्देलखण्ड़ के लोकगीत, लोकनृत्य और वाद्ययन्त्र महत्वपूर्ण है। इसके लोकगीत मौसम, देवी-देवताओं, संस्कार, समाज की विषय वस्तुओं को लिये हुए है। वहीं लोकनृत्य, वधावा, पलना, दिवारी, होरी, राई और घट, जवारा, लंगुरिया, झिंझिया, ठोला, रावला, स्वांग आदि है। वही बुन्देली लोकवाद्य ढोलक, नगढिया, सारंगी, बासुरी, खंजरी, ठप, लोटा, चमीटा, झीका, मंजीरा और रमतुला है। शहर पर आधारित आधुनिक माध्यमों की तुलना में ग्राम आधारित लोक माध्यम ग्रामीण लोगो के द्वारा अधिक विश्वसनीयता से स्वीकार किये जाते है। पारम्परिक माध्यमों पर परिवार कल्याण, अशिक्षा आदि कार्यो का प्रभावी ढंग से सन्देश दिया जाता है। लन्दन सेमिनार ने घोषित किया था कि परिवार नियोजन जैसे कार्यक्रमों के लिए परंपरागत माध्यम अतिप्रभावी है।