सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की वैचारिक पृष्ठभूमि में आजीविकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। बाशम ने आजीविकों के विकास की पृष्ठभूमि में कई आधारों को स्वीकार किया है जैसे- आर्यों के पूर्वी प्रसार के कारण गंगा-घाटी मंर प्रचलित अर्येत्तर जीवन पद्धति से उनका सामंजस्य मगध विदेह आदि में परिव्राजक भ्रमणशील सन्तों की रुढ़िवादी विचारवादी परम्परा जिसे विदेह राजा जनक एवं अन्य राजाओं का संरक्षण प्राप्त था, अनार्यों के प्रकृतिवादी विश्वासों से उद्भूत कर्म एवं पुनर्जन्म और आत्मा के आवागमन आदि से सम्बन्धित विचार जिसमें परिवर्तन को एक विशिष्ट नैतिकवादी मानसिकता का आवरण मिला, साम्राज्यवाद का विकास एवं गणतन्त्रात्मक राज्य पद्धति सहित, छोटी-छोटी सत्ताओं का हनन, नगरीय सभ्यता का चलन जिसके कारण समाज में एक और साधन सम्पन्न धनी वर्ग (राजा, धनिक, श्रेष्ठी आदि) के अति विलासितापूर्ण जीवन साध्य हो गया था। मौद्रिक प्रणाली का चलन स्थापित हो गया था एवं समाज में धनी एवं निर्धन की कोटियाँ स्थापित हो गयी थी। ये सभी कारण छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जनमानस में वैचारिक उद्वेलन का कारण बने। इस विकासमान परिस्थितियों से उत्पन्न नैराश्य भी कठिन तप अपरिग्रह तथा नियतिवाद जैसी जीवन पद्धति एवं मानसिकता का कारण रहा होगा। वैसे तो बदलती हुई सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में कई विचारकों ने अपने-अपने सिद्धान्तों के प्रचार द्वारा योगदान दिया लेकिन जनमानस को सबसे अधिक प्रभावित किया बौद्ध तथा जैन धर्म ने विशेष रूप से बौद्ध धर्म अधिक लोकप्रिय हुआ। बौद्ध धर्म में ब्राह्मणों द्वारा निर्धारित वर्णव्यवस्था पर सीधा प्रहार किया तथा संघ में ऊँच-नीच सभी को समान स्थान देकर महाभारत की कथा में पशुओं की अकाल मृत्यु के कारण मकखलि का नियतिव ...