डॉ0 लोहिया मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने के प्रबल पक्षधर थे। डॉ० लोहिया देश और विदेश भ्रमण के द्वारा यह तथ्य का भलीभाँति विवेचन कर चुके थे कि किसी देश का विकास उसकी अपनी मातृभाषा के माध्यम से ही हो सकती है क्योंकि विश्व के तमाम देश अपनी मातृभाषा के माध्यम से आज संसार में अपना अग्रणी स्थान बनाये हुए हैं, जैसे जर्मनी, जापान, फ्रांस, चीन, रूस, सउदी अरब के देश आदि हैं। बालक मातृभाषा के माध्यम से अपने विचारों को अधिक स्पष्टता के साथ व्यक्त कर सकता है। मातृभाषा के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए शिक्षा का माध्यम मातृभाषा बनाये जाने की आवश्यकता व्यक्त की थी एवं महत्ता आज भी है और आगे भी रहेगी। डॉ0 राममनोहर लोहियासंसार में अलगाववाद, क्षेत्रवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद आदि समस्याओं के निराकरण के लिए विश्व नागरिकता का दृष्टिकोण पैदा करने के लिए शिक्षा का माध्यम सर्वोत्तम माना है। डॉ0 लोहिया का मानना था कि शिक्षा के द्वारा व्यक्ति का मानसिक, बौद्धिक विकास करके मनुष्य के विचारों में संकीर्णता को मिटाकर व्यापकता पैदा करके विश्व नागरिकता का सपना साकार किया जा सकता है। विश्व नागरिकता भाव संसार में समरसता की भावना को जन्म देती है जिसे युद्ध, आतंक, कलह, क्षेत्रवाद आदि समस्यायें स्वतः समाप्त हो जाती हैं। आज का युग अलगाववाद और आतंकवाद का युग माना जा रहा है। जिसका समाधान विश्व एकता की भावना जाग्रत करके ही किया जा सकता है।