यह उस मध्यवर्गीय साधारण व्यक्ति की तस्वीर है जो अपनी अतृप्त लालसाओं और कुछ बनने की महत्त्वाकांक्षाओं के कारण परिस्थितियों से टकराता है, किन्तु उनका चक्रब्यूह तोड़ नहीं पाता है। अपने आदर्शों एवं मूल्यों के साथ समझौता करके मजबूरन विवश-स्थिति को जीने के अलावा उसके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। वस्तुतः उन्होंने जीवन के बाह्य स्वरूप के अवलोकन मात्र के आधार पर ही नहीं, अपितु उसकी गहराई में पैठ कर भोगे हुए यथार्थ अनुभव के आधार पर अपने उपन्यासों का सृजन किया है। यही कारण है कि उनके उपन्यासों में चित्रित पात्र एवं घटनायें जीवंत और हमारे आस-पास के प्रतीत होते हैं। उनके उपन्यास मध्यवर्गीय व्यक्ति के दुःख-दर्द, संघर्ष-पराजय, घुटन-कुण्ठा, विवशता-परवशता, आकांक्षा-आशंका पूर्ण जीवन के अंधकारमय वर्तमान तथा आशाहीन भविष्य के मूल कारणों की खोज करते हुए तत्कालीन व्यवस्था की विसंगतियों तथा विडम्बनाओं को उद्घाटित करने के साथ-साथ उसके लिये जिम्मेदार शक्तियों के विरूद्ध खड़े होकर निरन्तर संघर्ष करने की भी प्रेरणा देते हैं।