महिला-पुरूष समानता के सिद्धान्त को भारतीय संविधान के प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, राज्यों के लिए नीति निर्देशक तत्वों में ही प्रतिस्थापित किया गया है। संविधान न केवल महिलाओं के लिए समानता की गारण्टी प्रदान करता है बल्कि राज्यों को महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक कदम उठाने का हक भी प्रदान करता है। 5वीं पंचवर्षीय योजना( 1974-1978) के समय से ही भारत महिलाओं के सशक्तिकरण को समाज में उनकी स्थिति निर्धारित करने के लिए केन्द्रीय मुद्दे के रूप में लेकर चल रहा है और सरकार महिला मुद्दे को कल्याण से लेकर विकास के रूप में लाकर अपने दृष्टिकोण में एक बहुत बड़ा बदलाव लाया है।