साहित्य समाज का दर्पण है। समाज में जो भी घटित होता है वह साहित्य में प्रतिबिम्बित होता है। कवि की अनुभूति ही काव्य रूप में अभिव्यक्ति पाती है। यह अभिव्यक्ति किसी भी भाषा में हो सकती है। भाषा केवल माध्यम है। भाव ही मुख्य है, परन्तु यह प्रमाणित है कि संसार की समस्त कृतियों में ऋग्वेद प्रथम कृति है। इससे यह भी प्रमाणित हो जाता है कि संस्कृत भाषा प्राचीनतम भाषा है। अतः संसार का प्राचीनतम ज्ञान-विज्ञानकोष इसमें निहित है।
संस्कृत साहित्य भारतीय समाज के उत्कृष्ट जीवनमूल्यों, जीवन दर्शन, आध्यात्मिकता, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं का प्रतिबिम्ब है। संस्कृत साहित्य भारतीय संस्कृति का संवाहक भी है। लगभग 3000 वर्ष पहले वैश्विक धरातल पर जब अपने विचार को अभिव्यक्ति प्रदान करने का प्रारंभिक प्रयास चल रहा था, उस समय भारतभूमि पर वाग्देवी अपने सम्पूर्ण एवं उत्कृष्ट रूप में ऋग्वेद के सूत्रों के रूप में अवतरित हो चुकी थी। तब से अनवरत संस्कृत साहित्य सरिता अविरल एवं सहज गति से प्रवाहमान है। धर्म, अर्थ, काम, एवं मोक्ष जैसे पुरुषार्थों की परिकल्पना कर उसे व्याख्यायित करने वाली, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वाणप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम के रूप में जीवन को एवं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र के रूप में समाज को व्यवस्था एवं संतुलन प्रदान करने वाली, सोलह संस्कारों, तीन ऋणों, पंच महायज्ञों एवं गुरूकुल शिक्षा से जीवन को परिमार्जित करने वाली तथा अपने आध्यात्मिक जीवन दर्शन से आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करने वाली भारतीय संस्कृति का सम्पूर्ण दर्शन है संस्कृत साहित्य। संस्कृत साहित्य में जीवन के श्रेय एवं प्रेय दोनों पक्षों का सामंजस्य है। भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के उत्तरोत्तर विकास की सम्पूर्ण झांकी है संस ...