मिथिला का इतिहास सही मायने में दिग्विजय अथवा महान् साम्राज्य की स्थापना का इतिहास नहीं अपितु ज्ञान एवं विद्या का अक्षुण्ण सांस्कृतिक इतिहास है। इस बात की पुष्टि मिथिला से प्राप्त पुरावशेषों से होती है।[1] यद्यपि पौराणिक काल से इस क्षेत्र के इतिहास की एक शृंखलाबद्ध जानकारी प्राप्त होती है, पर उत्तर-वैदिक-साहित्य ने इसकी प्राचीनता, राजनीतिक व धार्मिक स्वरूप एवं भौगोलिक विस्तार पर विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है।[2] अलग-अलग काल में इसे चाहे विदेह[3], तीरभुक्ति, तिरहुत या तपोभूमि[4] नाम से सम्बोधित किया जाता रहा हो, पर मिथिला के राज्य के वैभव और प्रतिष्ठा के विषय में भारतीय साहित्यकारों एवं मनीषियों तथा विदेशी यात्रियों[5] ने पूरी श्रद्धा से अपने विचार व्यक्त किये हैं।