आजादी के पहले अॅग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के कारण अभ्रक मजदूरों की स्थित ठीक नही थी सिके कारण आजादी के बाद भारत की सरकार ने। माइका सिंडिकेट की स्थापना की। एक सार्वजनिक कम्पनी के रूप में माइका सिंडिकेट’ की स्थापना तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा 01 सितम्बर, 1961 को की गई।
माइका सिंडिकेट’ की स्थापना का मुख्य उद्धेश्य अभ्रक की मांग में उतार-चढ़ाव से निर्माताओं, डीलरों एवं निर्यातकों की मदद हेतु अभ्रक उद्योग की रक्षा करना था। इसके साथ ही अभ्रक खानों के श्रमिकों के स्वास्थ्य एवं जनकल्याण को भी इसने अपना लक्ष्य बनाया।
माइका सिंडिकेट (अभ्रक व्यवसाय संघ) की धारा के अधीन तत्कालीन बिहार के राज्यपाल को यह अधिकार प्राप्त था कि वह पूर्णकालिक अवधि के लिए एक अध्यक्ष (चेयरमैन) और उसे सहयोग देने हेतु एक सचिव की नियुक्ति कर सके। बोर्ड ऑफ़ डाइरेक्टर में राज्य सरकार द्वारा नामित 50 भूतपूर्व सरकारी निदेशक और 50 निर्वाचित ‘निदेशक होते थे जिनके पास पाँच हजार रूपये तक का शेयर होता था। कम्पनी को शत-प्रतिशत राज्य के अधिकार में करने के लिए मई, 1975 में अभ्रक व्यवसाय संघ की धारा में संशोधन किया गया। इस संशोधन के तहत् बिहार के राज्यपाल को कम्पनी के सभी डाइरेक्टरों को नामित करने का अधिकार प्राप्त हुआ, जिनकी संख्या दो से पन्द्रह के बीच होती थी।
नवम्बर, 1978 से अभ्रक खनन का कार्य बिहार राज्य खनिज विकास निगम (बिहार स्टेट मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन) को स्थानांतरित हो गया। व्यापक कोशिशों के बावजूद ‘अभ्रक व्यवसाय संघ’ को लगातार भारी नुकसान उठाना पड़ रहा था। जिस मुख्य उद्धेश्य को लेकर सिंडिकेट की स्थापना की गई थी, उसे प्राप्त करने में माइका सिंडिकेट असफल रहा।
माइका सिंडिकेट ने अपने अध्यक्षों द्वारा विदेशी बाजार को सम ...