यह पत्र नट समुदाय की स्थितियों को उनकी गरीबी के संबंध में समझने से संबंधित है। नट एक खानाबदोश समुदाय है, मुख्य रूप से गायनं रस्सी नृय और बाजीगरी में शामिल है। नट शब्द का एक अर्थ नृत्य या नाटक (अभिनय) करना भी है। शरीर के अंग-प्रयंग को लचीला बनाकर भिन्न मुद्राओं में प्रदर्शित करते हुए जनका मनोरंजन इनका मुख्य पेशा है। इस समुदाय में बहुसंस्कृतिवाद उनके समाज के एक महत्वपूर्ण पहलु है। समकालीन समय में नट समुदाय से संबंधित उनके शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की स्थिति पर ध्यान दें। यह पत्र बुनियादी सुविधाओं, असमानता और समाजिक बहिष्कार उसके अभाव के पहलुओं पर चर्चा करता है। समकालीन समाज में उनके पिछड़ेपन की नींव रखता है। इतिहासिक रूप से वे कलाबाज है। पारंम्परिक रूप से राजपूत शासकों द्वारा संरक्षण दिया गया था, नवजात शिशु, विवाह और नृत्य के लिए नट को विशेष आमंत्रित किया जाता था। समय बीतने के बाद और कुछ कारकों के कारण इन कौशलों को प्रासंगिक नहीं देखा गया है। समकालीन समाज के लिए यह समुदाय धीरे-धीरे मनोरंजन से स्थानांतरित हो गया है। अब मजदूर के रूप में कार्य करता है। रिक्शा चालक, संविदा, पशुपालन और कृषि मज़दूर में कार्य कर अपना पालन-पोशन करता है वे अनपढ़ है, और स्वास्थ्य के देखभाल के लिए कोई सुविधा नहीं है। गरीबी उसे मुख्य धारा के समाज से अलग कर देती है। अब वे समाजिक रूप से बहिष्कृत है और रहने के लिए मजबूर है। नट जाति के बच्चों का स्कूल में नामांकन के अनुपात बहुत ही कम है। नट जाति की स्त्रियाँ नाचने व गाने का कार्य करती है। इस जाति को भारत सरकार ने संविधान में अनुसूचित जाति के अन्तर्गत शालिम कर लिया है ताकि उनकी समाज के अन्दर उन्हें, शिक्षा, रोजगार आदि के विशेष अधिकार देकर आगे बढ़ाया जा सके। इनकी स् ...