भारतीय राष्ट्रीयता का मूलाश्रय तो, सदा से संस्कृति ही रहा है। संस्कृति का सामान्य अर्थ आदतों, अभिवृतियों और मूल्यों के न्यूनाधिक संगठित और दृढ़ ताने-बाने से लगाया जाता है जो एक पीढी से दूसरी पीढी को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार संस्कृति में किसी समाज के किसी भाग के लोगों का पारस्परिक व्यवहार, उनके विश्वास और भौतिक वस्तुएँ आती हैं। संस्कृति को लेखकों द्वारा विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया गया है। कुछ विचारक संस्कृति में उन सभी तत्वों को सम्मिलित करते है जो मनुष्यों को समाज में परस्पर संयुक्त करते है। कुछ लेखक संकुचित अर्थ लेते हैं और इसमें केवल अभौतिक अंगों को ही लेते है। वेदों के केवल सामाजिक विचार ही नहीं हैं बल्कि तत्कालीन संगीत, कला और वाद्ययन्त्रों की भी चर्चा की गई है। यजुर्वेद ने वाद्ययन्त्रों की व्यवस्था कर संगीत के संबंध में प्रारम्भिक चर्चा की गई है जो सामवेद में आकर विकसित हो गई है। सम्पूर्ण सामवेद गायन के सिद्धान्तों के आधार पर रचित है।