हड़प्पा संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। सिन्धु घाटी की उपत्यका में स्थित हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो ईसा पूर्व 2700 अथवा 2500 से ईसा पूर्व 2000 तक नगर संस्कृति के प्रधान केन्द्र बने। सिन्धु घाटी की कला सामग्री हमें उन वस्तुओं के रूप में उपलब्ध है जो मुख्यतः हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नामक दो बड़े नगरों में खंडहरो से मिली हैं। कनिंघम ने 1878 ई. में हड़प्पा के टीले का पता लगाया था और उसकी कुछ मोहरों को भी छापा था पर इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया परन्तु कुछ वर्षो के बाद 1921 ई. में श्री दयाराम साहनी ने हड़प्पा की जो खुदाई कराई उससे उसके प्रागैतिहासिक स्वरूप पर प्रकाश पड़ता है। सिन्धु घाटी सभ्यता के उद्घाटन से भारतीय इतिहास और कला के क्षेत्र में चामत्कारिक परिवर्तन हुआ। इसके उत्खनन से यह पता चला है कि यह एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी और उसके वास्तु विन्यास तथा नगर नियोजन की व्यवस्था बहुत ही सुदृढ़ थी। इस काल की बनी मूर्तियाँ तकनीकी दृष्टि से अत्यन्त उत्कृष्ट हैं। रोपण से नर्मदा-ताप्ती घाटी तथा बलूचिस्तान से मेरठ तक विस्तृत इस विशाल संस्कृति में विविध सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक परम्पराएँ प्रचलित थी।