जल मानव जीवन के अस्तित्व के प्राथमिक शर्त के रूप में महत्व रखता हैं। यह बहुमूल्य संसाधन में केवल दैनिक आवश्यकताओं, सामाजिक आर्थिक विकास क्रियाकलापों, पर्यावरण जरूरतों, खाध, उर्जा उत्पादन तथा गरीमामय जीवन के लिए महत्वपूर्ण है वरन् कई सांस्कृतिक-धार्मिक रीतियों के संचालन में जल की केन्द्रीय भूमिका होती हैं। जल के बिना मानव जीवन की कल्पना करना भी असंभव मालूम होता है। परन्तु सभ्यता के तीव्र रफ्तार में मानव ने इस बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन का इतना दोहन कर लिया है कि अगर पृथ्वी पर पीने योग्य जल न बचे तो क्या होगा? यह आशंका निर्मूल नहीं है, लगातार सूखते नदी, नहर, तालाब, कुएँ, बावडियाँ, प्रदुषित होते नदिय तथा भौम जल, दिनों-दिन जल से संकुचित होता पृथ्वी का गर्भ इस बात के प्रमाण है। प्रायः हर वर्ष ग्रीष्म ऋतु में शहरों, महानगरों में जल की उपलब्धता को लेकर हाहाकार एक आम संकट हो चुका है। पूर्वी राजस्थान के सवाईमाधोपूर जिले की बामनवास तहसील के अध्ययन के दौरान वहां की पेयजल संकट की स्थिति का पता चला। गिरते भू-जल स्तर एवं वर्षा की अनियमितता के कारण हैंडपंप, कुएँ, तालाब, बावडियों के सूख जाने एवं फ्लोराइड की समस्या के चलते पेयजल का संकट उत्पन्न हो गया हैं। ग्रीष्म काल के दौरान इस क्षेत्र में महिलाएं गावों से कई किलोमीटर दूर से पानी लेकर आती हैं एवं कुछ गावों में पानी के टेंकरों के माध्यम से पेयजल की आपूर्ति की जाती हैं। प्रस्तुत पेपर में मैंने प्रतिचयन विधि का प्रयोग किया है जिसके तहत बामनवास तहसील के गांव-बामनवास, मीणापाड़ा, पीपलाई का चयन कर पेयजल संकट का अध्ययन किया हैं। बामनवास तहसील जलसंसाधन उपलब्धता की अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में वर्गीकृत है एवं फ्लोराइड की गंभीर समस्या के कारण गुणवत्तापूर ...