आपराधिक न्याय शास्त्र में अपराधी के खिलाफ सबूत एकत्र करना मुकद्मा चलाना व सजा देना न्याय प्रशासन का प्रमुख कार्य माना गया है। न्यायशास्त्र के लगभग सभी सिद्धांत अपराधी को सजा दिलाने की दिशा में कार्य करते है। पुलिस, अभियोजन ओर न्यायपालिका भी अपराधी को केन्द्र बिन्दु मान कर ही कार्य करते है। पीड़ित द्वारा पुलिस के समक्ष रिपोर्ट करने के तुरंत बाद उसकी तरफ से अपराधी को सजा दिलवाने का जिम्मा सरकार द्वारा ले लिया जाता है। इस सारी प्रक्रिया में पीड़ित व्यक्ति पर्दे के पीछे चला जाता है, जबकि वास्तव में प्रक्रिया का केन्द्रक उसे होना चाहिये था, क्योकि सारी प्रकिया उसी के लाभ, उसी की रक्षा और उसी के अस्तित्व के लिये हैं। सबसे पहले 1947 में एक फ्रेंच वकील बेंजामिन मेंडल सोन ने पीड़ित व्यक्ति को केन्द्र बिन्दु मानते हुए अपराध काअध्ययन किया। अपने शास्त्र को उसने ‘पीड़ित-शास्त्र’ (Victimology) का नाम दिया। यहाँ यह चर्चा करना सुसंगत होगा कि हालांकि आधुनिक काल में पीडित व्यक्ति को उपेक्षित किया गया था। परंतु विष्व इतिहास के प्राचीन और मध्यकाल में वह उपेक्षित नहीं था। भारत में मनुस्मृति, यूनान में होमर कृत इलियड, असीरिया में हम्मुरवी की संहिता आदि में पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति दिलवाने आदि का उल्लेख मिलता है।