भोजन, आवास और यौन संतुष्टि जैसे मौलिक कार्य आज के आधुनिक परिवार भी करते है, लेकिन इन कार्यो को करने की विधियों एवं इनसे संबंधित मूल्यों में परिवत्र्तन हो रहे है। लेकिन यह परिवत्र्तन पश्चिमी परिवारों में होने वाले परिवत्र्तन की तरह आमूल-चूल परिवत्र्तन नहीं है। परिवार के प्रकार्य, परिवार की संरचना पर निर्भर करता है और समाज की प्रकृति, परिवार के प्रकायो को निर्धारित करती है। परिवार के प्रकार्य, जैसे- बच्चों का प्रजनन के बाद पोषण एवें संरक्षण प्रदान करना, उन्हें रोटी, कपड़ा और मकान उपलब्ध करवाना, यौन व्यवहार को नियंत्रित करना, समाजीकरण, संस्कृति को पीढ़ी-दर-पीढी हस्तांरित करना, भावनात्मक प्रोत्साहन, सामाजिक पहचान दिलवाना आदि कार्य परिवार द्वारा किये जाते रहे है। परन्तु आधुनिक भारतीय परिवार में इन कार्यो में परिवत्र्तन हो रहे हैं, लेकिन इस परिवत्र्तन में भी परम्परागत परिवार के लक्षणों को देखे जा सकते है।