भारत की बड़ी जनसंख्या हेतु आजीविका, खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के क्रम में जलवायु परिवर्तन एक चिंता का विषय है। क्योंकि भारत की लगभग 700 मिलियन ग्रामीण जनसंख्या जलवायु संवेदनशील कृषि क्षेत्र से आजीविका प्राप्त करती है, जोकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हेतु सबसे ज्यादा सुभेद्य है। योजना आयोग ने 1989 में मध्यम एवं सूक्ष्म स्तर पर भौगोलिक संरचना, मृदा, जलवायु कारक, शस्य प्रतिरूप, सिचाई साधनों के विकास, खनिज संसाधनों और भविष्य में विकास की रणनीति को ध्यान में रखकर 15 कृषि-जलवायु प्रदेशों तथा 73 उप कृषि-जलवायु प्रदेशों का निर्धारण किया। इन कृषि-जलवायु प्रदेशों का मुख्य उद्देश्य कृषि एवं सम्बद्ध संसाधनों का वैज्ञानिक उपयोग कर कृषि उत्पादन में वृद्धि, कृषि आय बढ़ाना, रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न करना है।
बुंदेलखण्ड कृषि-जलवायु प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के कारण बार्षिक एवं ऋतुविक आधार पर वर्षा की मात्रा एवं वर्षा के दिनों में अत्यधिक कमी तथा अनियमितता, वर्षा की तीव्रता में वृद्धि देखी जा रही है। सामान्य मानसून में बरसात के दिनों में निरंतर हो रही गिरावट तथा वर्षा की प्रकृति में तीव्रता के साथ होने की नयी प्रवृति से वर्षा जल को भूमिगत जल तक रिस कर जाने में अत्यधिक कम समय मिलता है। जिसका प्रभाव भूजल, मृदा अवनयन, उर्वरता में कमी, कृषि उत्पादकता में कमी तौर पर परिलक्षित हो रहा है। जिससे अधय्यन क्षेत्र में शस्य सयोंजन एवं शस्य प्रतिरूप में स्थानिक एवं कालिक स्तर पर परिवर्तन भी दिखाई दे रहा है।