बाबू बालमुकुन्द गुप्त भारतेंदु युग और द्विवेदी युग को जोड़ने वाली कड़ी हैं। इनके निबंधों में यदि एक ओर भारतेंदु युग का राष्ट्र-प्रेम, जन जागरण और सामाजिक नव निर्माण की लालसा मुखरित हुई है तो दूसरी ओर द्विवेदी युगीन भाषा सौष्ठव भी विद्यमान है। इस प्रकार भारतेंदु युगीन आत्मा और द्विवेदी युगीन कलेवर को धारण कर इनके निबंध पार्दुभूर्त हुए हैं। इनकी प्रतिभा बहुमुखी थी। ये हिंदी के प्रमुख निबंधकार, पत्रकार, आलोचक तथा कवि थे। हिंदी गद्य के उन्नायकों में इनका गौरवशाली स्थान है।