साहित्य किसी जाति, धर्म या वर्ग का साहित्य नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण मानवता की बात करने वाला साहित्य है। साहित्य ब्रह्मानंद सहोदर है, साहित्य वह सूरम्य रचना है, जो हृदय से निकल कर हृदय को ही प्रभावित करती है। साहित्य और सामाजिक जीवन का अन्योन्याश्रित संबंध रहा है। समाज जीवन, सामाजिक चेतना, सामाजिक परिवेश के साथ उसके बदलते चित्र को भी अंकित करने का कार्य साहित्य में हो रहा है। साहित्य समाज का दर्पण है।