श्रृंगार रस के दो भेद स्वीकार किए गए हैं-संयोग श्रृंगार या वियोग श्रृंगार। संयोग श्रृंगार में नायक-नायिका के मिलन का चित्रण किया जाता है तथा वियोग श्रृंगार में नायक-नायिका के विरह का चित्रण किया जाता है। इस वियोग श्रृंगार को ही ‘विरह‘ भी कहा जाता है। प्रायः देखा गया है कि प्रत्येक सफल कवि के पीछे प्रेम की विफलता ही काव्य शक्ति के रूप में कार्य करती हैं।