आधुनिक युग में हिन्दी काव्य में पौरुष का प्रतीक और राष्ट्र की आत्मा का गौरव गायक जिस कवि को माना गया है, उसी का नाम रामधारी सिंह ‘दिनकर’ है। वाणी में ओज, लेखनी में तेज और भाषा में अबाध प्रवाह उनके साहित्य में देखा जा सकता है। ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के सिमिरिया घाट स्थान पर 30 सितम्बर, 1908 को हुआ। मुंगेर जिले में यह छोटा-सा ग्राम है। इनके पिता का नाम श्री रविसिंह था। कविवर दिनकर ने काव्य-क्षेत्र में ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘उर्वशी’ जैसी महान् कृतियाँ देने के अतिरिक्त ‘रेणुका’, ‘रसवन्ती’, ‘सामधेनी’, ‘बापू’, ‘रश्मि-रथी’, ‘द्वन्द्वगीत’, ‘नील कुसुम’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘आत्मा की आँखें’ आदि अनेक कृतियाँ प्रदान की हैं। सन् 1959 में ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से विभूषित हुए। इन्हें ‘संस्कृति के चार अध्याय’ ग्रन्थ पर साहित्य अकादमी से पाँच हजार का पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन् 1972 में ‘उर्वशी’ कृति पर इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
देव दुर्विपाक से 24 अप्रैल सन् 1974 को आपका असामयिक निधन हो गया।