शिक्षा एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है जिसका न कोई आदि है न अन्त। मानव जन्म से लेकर अपने अस्तित्व के धूमिल होने तक शिक्षारत रहता है। बस यदि कुछ बदलता है तो वह शिक्षा का स्वरूप प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, व्यवसायिक एवं तकनीकी शिक्षा इत्यादि किन्तु विवेचन करने से स्पष्ट होता है कि शिक्षा में माध्यमिक शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण स्तर है। यह प्राथमिक और उच्च शिक्षा के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने वाली कड़ी है। इस शिक्षा का सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था में विशेष महत्व है। किशोर बालक-बालिकाओं में ज्ञानवर्धन के साथ-साथ सामाजिक सद्गुणों का विकास अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के प्रति जागरूकता, आत्म निर्भता और आत्म विश्वास आदि चारित्रिक गुणों का विकास करना माध्यमिक शिक्षा का मूल उद्देश्य है। भारत सरकार ने बच्चों एवं उनके अधिकारों के प्रति अपनी वचनबद्धता सुनिश्चित करते हुए बाल अधिकार सम्मेलन पर 1992 में अपनी सहमति व्यक्त की। बाल अधिकार सम्मेलन के अनुसार बच्चों के अधिकार हर प्रकार के भेदभाव (प्रजाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचारधाराओं, राष्ट्र, नैतिक या सामाजिक उद्भव, गरीब या अक्षमता, दानों अथवा कोई एक पर आधारित) के विरुद्ध संरक्षित हैं। प्रत्येक बच्चे को जीवन जीने का, बने रहने का एवं विकास का मूलभूत अधिकार है। पर हम सब जानते हैं कि बाल अधिकारों का हनन नियमित रूप से हर जगह हो रहा है - घर में एवं विद्यालय में शारीरिक दंड, मानसिक प्रताड़ना, शारीरिक कष्ट के रूप में, बाल श्रम, बालिका भ्रूण हत्या एवं बलात्कार, अपहरण एवं नशीले पदार्थों की तस्करी आदि।