सामान्य व्यक्ति भी सर्जक-कलाकार की तरह घटनाओं का अनुभव करता है, एकाकार होकर रोता-हँसता भी है। पर उन घटनाओं को कलात्मक रूप देने की क्षमता सामान्य व्यक्ति में नहीं है। “विशिष्ट मानवीय क्षमता में कवि दूसरों से भिन्न होता है। सृजन और भाषा-प्रयोग की क्षमता उसमें ज्यादा विकसित है।” वह क्षमता केवल कवि या कलाकार में ही है। संवेदनक्षमता और अभिव्यक्ति कुशलता की न्यूनता-अधिकता के आधार पर सर्जक को साधारण अथवा श्रेष्ठ माना जाता है।
सृजनात्मक शक्ति या प्रतिमा की व्याख्या संपूर्ण रूप से संभव नहीं है। वह अव्याख्येय है। उसकी मात्रा सब सर्जकों में समान भी नहीं है। भौतिक परिस्थिति भी उसके निर्माण में पूर्ण रूप से समर्थ नहीं होती, यद्यपि उचित परिस्थिति उसके विकास के लिए आवश्यक है।