वर्ष 1994 में एम एड. करने के पश्चात मेरे अन्तर्मन में शोध कार्य करने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। हमारा गौरवशाली भारत देश अनेक सन्तों, ऋषि, मनीषियों, दार्शनिक विचारकों, शिक्षाविदों का देश रहा है। जिनकी शैक्षिकध्दार्शनिक विचारधाराओं ने इस भारतभूमि को ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व को अनुप्राणित किया है। इसी विचार श्रृंखला में प्रख्यात शिक्षा दार्शनिक और सुप्रसिद्ध शिक्षाविद परम विभूति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का सुनाम मानस पटल पर जीवन्त हो उठा। इसी क्रम में संयोग से मेरी भेंट रुहेलखण्ड क्षेत्र के विद्वान डॉ. एन.पी. सिंह जी, उपाचार्य, एम. जे.पी. रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली से हुई। परम आदरणीय डॉ. एन.पी. सिंह ने मेरे अन्तर्मन की भावनानुकूल सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कृतियों एवं व्याख्यानों का शैक्षिक अध्ययनश् विषय पर शोध हेतु मेरी उत्कण्ठा से सहमति व्यक्त की। ईश्वर की कृपा से थोड़े समय पश्चात ही पूर्वाचल विश्वविद्यालय, जौनपुर द्वारा आंशिक संशोधन करते हुए “डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शैक्षिक विचारों का वर्तमान भारतीय परिप्रेक्ष्य में अध्ययनश् शीर्षक शोधार्थ स्वीकार कर लिया गया। तत्पश्चात् डॉ. एन.पी. सिंह साहेब के कुशल निर्देशन में शोधकर्ती जागरुकता पूर्वक प्रवृत्त हो गयी।